Watch Video: India ने कहा – Rupee में Trade होगा, No Matter What | अब Rupee करेगा Global Trade पर Raj

India ने हाल ही में इंटरनेशनल ट्रेड में रूपी के इस्तेमाल को लेकर एक बड़ा और साहसिक कदम उठाया है, जिससे डॉलर डोमिनेंस को सीधी चुनौती मिल रही है।

डोनाल्ड ट्रंप के समय से ही अमेरिका का रुख साफ रहा है – डॉलर को ग्लोबल ट्रेड से हटाने की किसी भी कोशिश पर टैरिफ और सेंक्शंस लग सकते हैं। लेकिन भारत ने यह साफ कर दिया है कि अगर रूपी में ट्रेड करना हमारे हित में है, तो हम अमेरिकी दबाव के बावजूद यही रास्ता अपनाएंगे।

खासकर रूस के साथ तेल आयात में रूपी बेस्ड सेटलमेंट को भारत ने जारी रखा है, भले ही ट्रंप प्रशासन ने कुछ उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लगा दिए हों।

इस दिशा में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सबसे अहम है स्पेशल रूपी वस्त्रो अकाउंट (SRVA) सिस्टम, जो विदेशी बैंकों को भारत में रूपी अकाउंट खोलने और उसमें ट्रेड सेटलमेंट करने की सुविधा देता है।

मान लीजिए रूस से तेल खरीदा जा रहा है, तो पहले डॉलर में पेमेंट करनी पड़ती थी, लेकिन अब वो पेमेंट सीधे रूपी में SRVA अकाउंट में की जाएगी। इस पैसे का इस्तेमाल रूस भारत से सामान खरीदने, यहां निवेश करने या अन्य कारोबारी गतिविधियों में कर सकता है।

हालांकि एक चुनौती ये है कि भारत रूस से ज्यादा इंपोर्ट करता है, जबकि रूस भारत से कम सामान लेता है, जिससे अकाउंट में रूपी सरप्लस जमा हो जाता है।

इस समस्या के समाधान के लिए हाल ही में एक बड़ा रिफॉर्म आया है – अब अगर किसी देश (जैसे रूस) के SRVA अकाउंट में रूपी सरप्लस है, तो वह इस राशि का इस्तेमाल किसी तीसरे देश (जैसे UAE) को पेमेंट करने में कर सकता है, बशर्ते भारत और उस तीसरे देश के बीच भी रूपी ट्रेड व्यवस्था हो।

यह कदम न सिर्फ ट्रेड को लचीला बनाएगा बल्कि रूपी के इंटरनेशनल सर्कुलेशन को भी बढ़ाएगा।

RBI ने जनवरी 2025 में एक और बड़ा फैसला लिया – विदेशी व्यक्तियों को भारतीय बैंकों की ओवरसीज़ ब्रांच में रूपी अकाउंट खोलने की अनुमति दी।

इससे विदेशी एक्सपोर्टर्स भारत को डॉलर की जगह सीधे रूपी में पेमेंट रिसीव कर सकते हैं और उस राशि को भारत में निवेश या भारतीय उत्पादों की खरीद में इस्तेमाल कर सकते हैं।

5 अगस्त 2025 को SRVA अकाउंट खोलने की प्रक्रिया को भी आसान बना दिया गया। पहले अधिकृत बैंकों को RBI से परमिशन लेनी होती थी, लेकिन अब ये बाध्यता हटा दी गई है, जिससे रेड टेपिज्म खत्म हुआ और अकाउंट ओपनिंग में स्पीड आ गई।

साथ ही, 12 अगस्त को निवेश के लिए नई फ्लेक्सिबिलिटी दी गई – अब SRVA में पड़े रूपी बैलेंस को बिना FPI रजिस्ट्रेशन के भारतीय सरकारी बॉन्ड्स और ट्रेजरी बिल्स में निवेश किया जा सकता है, जिसमें 30% राशि शॉर्ट-टर्म इंस्ट्रूमेंट्स में लगाई जा सकती है।

इन सुधारों का मकसद साफ है – भारत को क्षेत्रीय और वैश्विक करेंसी हब के रूप में पोज़िशन करना, खासकर BRICS+ जैसे मंचों पर। इससे डॉलर पर डिपेंडेंसी कम होगी, फॉरेक्स कन्वर्ज़न कॉस्ट बचेगी, रूपी की इंटरनेशनल इमेज मजबूत होगी और देश को अमेरिकी वित्तीय सेंक्शंस से सुरक्षा मिलेगी।

साथ ही, तेल और गैस जैसी रणनीतिक ज़रूरतों के लिए एनर्जी सिक्योरिटी भी बेहतर होगी, क्योंकि रूस, ईरान और कुछ खाड़ी देश रूपी स्वीकार करने को तैयार हैं।

हालांकि इसमें चुनौतियां भी हैं। सबसे पहली विदेशी पार्टनर्स को भारत से सामान और सेवाएं खरीदने में आसानी होनी चाहिए, वरना उनके लिए SRVA में पड़ा रूपी बेकार हो जाएगा।

दूसरी एक्सचेंज रेट स्टेबिलिटी बनाए रखना जरूरी है, ताकि अचानक रूपी का वैल्यू गिरने का खतरा न हो। तीसरी अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों की संभावित रिटैलिएशन, जिसमें नए टैरिफ या ट्रेड रेस्ट्रिक्शंस शामिल हो सकते हैं।

इसके बावजूद, भारत का यह कदम लंबी अवधि में रूपी को एक आंशिक रिज़र्व करेंसी बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। जैसे डॉलर को कई देश अपने रिज़र्व में रखते हैं, वैसे ही भारत चाहता है कि अन्य देश भी रूपी को अपने रिज़र्व में शामिल करें। इससे न सिर्फ हमारी आर्थिक स्वायत्तता बढ़ेगी बल्कि ग्लोबल ट्रेड में हमारी नेगोशिएशन पावर भी मजबूत होगी।

अगर मौजूदा रफ्तार और पॉलिसी सपोर्ट ऐसे ही चलता रहा, तो आने वाले सालों में इंटरनेशनल ट्रेड में रूपी की हिस्सेदारी कई गुना बढ़ सकती है, और भारत खुद को एक उभरती हुई वित्तीय ताकत के रूप में स्थापित कर सकता है – वो भी डॉलर के दबाव से काफी हद तक मुक्त होकर।

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